महादेवी वर्मा का "गौरा"रेखाचित्र कक्षा में प्रस्तुत करने से पहले श्रीमती सी.आर. राजश्री की यह आलेख पढें।महादेवी वर्मा द्वारा रचित सोना और गौरा नामक रेखाचित्र में मानव के निष्ठुर व्यवहार पर उन्होंने प्रकाश डाला है। पशु-पक्षी भी प्रेम के लिए लालियत रहते हैं और प्रेम दिखाने पर आनंदविभोर हो उठते हैं। बेजुबान होने पर भी स्नेह के कई मूक प्रर्दशन होते है। परन्तु मानव अपने स्वार्थ के कारण इन बेजुबान जानवरों पर इतना अत्याचार और निर्दय व्यवहार करता है और उनपर कितना जुल्म करता है इसका कोई अंत नहीं। मानव द्वारा इतनी यातना सह कर भी पशु मानव के स्वभाव से अब तक अनजाना है। मानव का यह स्वार्थ अंत में वेदना का कार्य और कारण बन जाता है, इसी बात पर प्रकाश डालना ही महादेवी वर्मी का मुख्य ध्येय है।
गौरा और सोना के संदर्भ में जानवरों के प्रति मनुष्य के व्यवहार पर विशेष अध्ययन इस आलेख में है।Thursday 26 May 2011
गौरा-रेखाचित्र सिखाने केलिए सहायक सामग्री |
Friday 20 May 2011
एक स्लैड शो-नदी और साबुन |
Saturday 14 May 2011
संकट में यमुना Source: यू-ट्यूब |
यमुना नदी अब संकट से गुजर रही है। पानी काला हो गया है, वातावरण में भी ताजगी नहीं रही। यमुना के दर्द को संजोए रवीश कुमार की खास रिपोर्ट...
Tuesday 10 May 2011
Sunday 8 May 2011
कविताओं में प्रतीक शब्दों में नए सूक्ष्म अर्थ भरता है |
कविताओं में बिंब और उनसे जुड़ी हुई संवेदना |
Wednesday 4 May 2011
Monday 2 May 2011
Sunday 1 May 2011
लुप्त होती नदियां |
Source: एक दुनिया एक आवाज
भारत नदियों का देश कहा जाता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारी नदियां आज लुप्त प्रायः होती जा रही हैं। नदियों की बात चलती है तो जेहन में सवाल उभरता है कि आखिर नदियां कैसे बनती हैं? कहां से आता है पानी इन नदियों में?
आज हम जो सबसे सुन रहे हैं कि भारत की नदियां मर रही हैं नाला बन गई हैं तो आईये जानते हैं टॉक्जिक लिंक के निदेशक रवि अग्रवाल की जुबानी कि हमारी नदियों की आज क्या स्थिति है और उसके लिये कौन जिम्मेदार है?
आज हम जो सबसे सुन रहे हैं कि भारत की नदियां मर रही हैं नाला बन गई हैं तो आईये जानते हैं टॉक्जिक लिंक के निदेशक रवि अग्रवाल की जुबानी कि हमारी नदियों की आज क्या स्थिति है और उसके लिये कौन जिम्मेदार है?
गीत नदी की रक्षा का |
Source:
बुन्देलखण्ड संसाधन अध्ययन केन्द्र, छतरपुर: म.प्र.Author:
भारतेन्दु प्रकाशनदियों को आजाद करो
अब न उन्हें बर्बाद करो,
नदियाँ अविरल बहने दो
उनको निर्मल रहने दो,
नदियों को यदि बहना है
तो जंगल को रहना है,
बॉंध नदी के दुश्मन हैं
जंगल उसके जीवन हैं,
मत काटो-बर्बाद करो,
उन्हे पुनः आबाद करो।
धरती का सम्पूर्ण जहर
गाँव-गाँव और शहर-शहर
बहा सिंधु मे ले जातीं
पावन भूमि बना जातीं,
प्राणिमात्र को दे जीवन
कृषि की बनती संजीवन,
भूजल-संग्रह भर देतीं
भूमि उर्वरा कर देतीं,
सरिता संग संवाद करो,
अब उनको आजाद करो।
रुको, न नदियों को मोड़ो
इधर-उधर से मत जोड़ो,
प्रकृति न इसको सहती है
सारी दुनिया कहती है,
सदियों तक सहना होगा
वर्षों तक दहना होगा,
सरिता तट के गाँव सभी
नही पायेंगे उबर कभी,
दूभर होगा जलजीवन,
वापस लाना बहुत कठिन।
सघन अगर जंगल होंगे
वर्षा जल को रोकेंगे,
गॉंव गॉंव तालाब भरें
कुंये बावड़ी नद जोहरें,
नदी बहें यदि पूरे साल
कभी न हो कोई बेहाल,
जोड़ तोड़ का काम नहीं
नदी मोड़ का नाम नहीं,
सारा राष्ट्र सुखी होगा
कोई नही दुखी होगा।
नदियाँ संस्कृति की माँ हैं
भारत भू की गरिमा हैं
जन-जन की आस्था उनमे
स्वयं प्रकृति की महिमा ये,
आओ अब संकल्प करें,
नदियों का संताप हरें,
बारह माह प्रवाह रहे
जीवन मे उत्साह रहे,
गंगा सी सारी नदियाँ,
फिर लौटें सुख की सदियाँ।।
कराहती नदियां |
वेब/संगठन: chauthiduniya com
Author: चौथी दुनिया
आमी का गंदा जल सोहगौरा के पास राप्ती नदी में मिलता है। सोहगौरा से कपरवार तक राप्ती का जल भी बिल्कुल काला हो गया है। कपरवार के पास राप्ती सरयू नदी में मिलती है। यहां सरयू का जल भी बिल्कुल काला नज़र आता है। बताते हैं कि राप्ती में सर्वाधिक कचरा नेपाल से आता है। उसे रोकने की आज तक कोई पहल नहीं हुई। पिछले दिनों राप्ती एवं सरयू के जल को इंसान के पीने के अयोग्य घोषित किया गया। कभी जीवनदायिनी रहीं हमारी पवित्र नदियां आज कूड़ा घर बन जाने से कराह रही हैं, दम तोड़ रही हैं। गंगा, यमुना, घाघरा, बेतवा, सरयू, गोमती, काली, आमी, राप्ती, केन एवं मंदाकिनी आदि नदियों के सामने ख़ुद का अस्तित्व बरकरार रखने की चिंता उत्पन्न हो गई है। बालू के नाम पर नदियों के तट पर क़ब्ज़ा करके बैठे माफियाओं एवं उद्योगों ने नदियों की सुरम्यता को अशांत कर दिया है। प्रदूषण फैलाने और पर्यावरण को नष्ट करने वाले तत्वों को संरक्षण हासिल है। वे जलस्रोतों को पाट कर दिन-रात लूट के खेल में लगे हुए हैं। केंद्र ने भले ही उत्तर प्रदेश सरकार की सात हज़ार करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी परियोजना अपर गंगा केनाल एक्सप्रेस-वे पर जांच पूरी होने तक तत्काल रोक लगाने के आदेश दे दिए हों, लेकिन नदियों के साथ छेड़छाड़ और अपने स्वार्थों के लिए उन्हें समाप्त करने की साजिश निरंतर चल रही है। गंगा एक्सप्रेस-वे से लेकर गंगा नदी के इर्द-गिर्द रहने वाले 50 हज़ार से ज़्यादा दुर्लभ पशु-पक्षियों के समाप्त हो जाने का ख़तरा भले ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पहल पर रुक गया हो, लेकिन समाप्त नहीं हुआ। गंगा और यमुना के मैदानी भागों में माफियाओं एवं सत्ताधीशों की मिलीभगत साफ दिखाई देती है। नदियों के मुहाने और पाट स्वार्थों की बलिवेदी पर नीलाम हो रहे हैं।
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