Friday 23 December 2011

क्रिसमस का सच्चा अर्थ


Friday 16 December 2011

मुफ्त में ठगी कविता केलिए एक सहायक सामग्री - कबीर के दोहे के संदर्भ में

केवल शैक्षिक आवश्यकताओं केलिए(केरल राज्य के दसवीं कक्षा के हिन्दी पुस्तिका की कविता मुफ्तमें ठगी(कवि - राम कुमार आत्रेय) कक्षा मे प्रस्तुत करने से पहले यह पोस्ट ज़रूर पढ़ें।)
हिंदी वेबसाइट से साभार
(जी.के. अवधिया के द्वारा 27 Nov 2010. को हिंदी वेबसाइट में सामान्य कैटेगरी के अन्तर्गत् प्रविष्ट किया गया।)  
छत्तीसगढ़ी में एक लोकोक्ति है “फोकट में पाइस अउ मरत ले खाइस” जिसका अर्थ है मुफ्त में खाने को मिला तो इतना खाया कि प्राण ही निकल गए। इस लोकोक्ति से यही सन्देश मिलता है कि अधिक लालच प्राणघाती होता है। इसीलिए तो कबीरदास जी ने भी कहा हैः
माखी गुड़ में गड़ि रहै पंख रह्यौ लिपटाय।
हाथ मलै और सिर धुनै लालच बुरी बलाय॥

लालच अर्थात् लोभ व्यक्ति को हमेशा नुकसान ही पहुँचाता है। छत्तीसगढ़ी के एक अन्य लोकोक्ति में कहा गया है – “लोभिया ला लबरा ठगे” जिसका अर्थ है “लोभी व्यक्ति को झूठा आदमी ठग लेता है”।
वास्तविकता तो यह है कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति लोभी या लालची होता है, लालच या लोभ प्राणीमात्र की स्वाभाविक मानसिकता है। चारे की लालच में मछली बंशी में फँस कर जान गवाँ देती है, पक्षी जाल में फँस जाते हैं, वन्य पशु भी मनुष्य की गिरफ्त में आ जाते हैं। मछली, पक्षी, वन्य पशुओं आदि के लालच का फायदा मनुष्य उठाता है चारे की लालच देकर।
मनुष्य न केवल अन्य प्राणियों के बल्कि मनुष्यों के भी लालच की मानसिकता का फायदा उठाता है चारे के रूप में “फोकट” या “मुफ्त” शब्द का इस्तेमाल करके। वास्तव में “फ्री”, “मुफ्त”, “फोकट” जैसे शब्द अचूक हथियार हैं लोगों के भीतर की लालच को उभारने के लिए। ये शब्द लोगों को बरबस ही आकर्षित कर लेते हैं। मुफ्त में मिलने वाली चीज को छोड़ देना कोई भी पसंद नहीं करता। वो कहते हैं ना “माले मुफ्त दिले बेरहम”। किन्तु इस मुफ्त पाने के चक्कर में हम लोगों को कितना लूटा जाता है यह बहुत कम लोगों को ही पता होगा।
बाजार में आप “दो साबुन खरीदने पर एक साबुन बिल्कुल मुफ्त!” जैसी स्कीम रोज ही देखते होंगे।
हिन्दी वेबसाइट
और इस स्कीम को जान कर हम खुश हो जाते हैं यह सोचकर कि एक साबुन हमें मुफ्त मिल रहा है, परिणामस्वरूप हम एक के बजाय तीन साबुन खरीद लेते हैं। तीन साबुन की फिलहाल हमें कतइ जरूरत नहीं है फिर भी हम तीन साबुन खरीद लेते हैं। क्यों? सिर्फ लालच में आकर। किन्तु हमें यह पता होना चाहिए कि जिसने हमें दो साबुन की कीमत में तीन साबुन दिए हैं उसने घाटा खाने के लिए दुकान नहीं खोला है, उसने हमसे कुछ न कुछ कमाया ही है। उसने अपनी कमाई के लिए हमारी लालच की मानसिकता का लाभ उठाते हुए हमें बेवकूफ बनाया है।
कैसे बेवकूफ बनाया है उसने?
मान लीजिये एक
साबुन की कीमत पन्द्रह रुपये हैं तो दो साबुन के दाम अर्थात् तीस रुपये में आपको तीन साबुन मिलते हैं। जरा सोचिये, साबुन बनाने वाली कम्पनी बेवकूफ तो है नहीं जो कि बिना किसी लाभ के साबुन बेचेगी। तीस रुपये में तीन साबुन बेचने पर भी उसे लाभ ही हो रहा है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि एक साबुन का मूल्य मात्र दस रुपये हैं। तो इस हिसाब से कम्पनी को साबुन का दाम पन्द्रह रुपये से कम करके दस रुपये कर देना चाहिये। पर कम्पनी दाम कम न कर के आपको एक मुफ्त साबुन का लालच देती है और आप लालच में आकर एक साबुन के बदले तीन साबुन खरीद लेते हैं जबकि दो अतिरिक्त खरीदे गये साबुनों की आपको फिलहाल बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। यदि कम्पनी ने दाम कम कर दिया होता तो आप दस रुपये में एक ही साबुन खरीदते और बाकी बीस रुपये का कहीं और सदुपयोग करते। इस तरह से दाम न घटाने का कम्पनी को एक और फायदा होता है वह यह कि यदि आप केवल एक साबुन खरीदेंगे तो आपको पन्द्रह रुपये देने पड़ेंगे। इस प्रकार से सिर्फ एक साबुन खरीदने पर मुनाफाखोर कम्पनी आपके पाँच रुपये जबरन लूट लेगी। बताइये यह व्यापार है या लूट?
भाई मेरे, यदि साबुन बिल्कुल मुफ्त है तो मुफ्त में दो ना, चाहे कोई दो साबुन खरीदे या ना खरीदे। ये दो साबुन खरीदने की शर्त क्यों रखते हो?
विडम्बना तो यह है कि अपनी गाढ़ी कमाई की रकम को लुटाने के लिये हम सभी मजबूर हैं क्योंकि सरकार ऐसे मामलों अनदेखा करती रहती है। इन कम्पनियों से सभी राजनीतिक दलों को मोटी रकम जो मिलती है चन्दे के रूप में।

सच बात तो यह है कि फ्री या मुफ्त में कोई किसी को कुछ भी नहीं देता। किसी जमाने में पानी मुफ्त मिला करता था पर आज तो उसके भी दाम देने पड़ते हैं।
यदि कोई कुछ भी चीज मुफ्त में देता है तो अवश्य ही उसका स्वार्थ रहता है उसमें।

Thursday 8 December 2011

मम्मी और माँ

चित्रवाचन केलिए एक सामग्री
(चित्र फेसबुक के ठलुआ क्लब से साभार)
आदमी का बच्चा!!!

Saturday 26 November 2011

विराम-चिह्न की आत्मकथा

मैं विराम-चिह्न हूँ। कुछ विद्वान मुझे विराम चिन्ह या विराम भी बोलते हैं लेकिन मुझे कोई आपत्ति नहीं है। हाँ, एक बात मैं बता दूँ; मेरी कोशिश रहती है कि लिखित वाक्यों आदि में मैं किसी न किसी रूप में उपस्थित रहूँ । मैं अपने मुँह मियाँ मिट्ठू नहीं बन रहा पर एक दिन मेरे गुरुजी बता रहे थे कि....

Monday 21 November 2011

अवुवक्करिन्टे उम्मा 1

ये वीडियो शैक्षिक आवश्यकताओं केलिए 'यू ट्यूब' से लिए है। इसके पीछे कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है। 
ഈ വീഡിയോകള്‍ പത്താം ക്ലാസ്സിലെ ഹിന്ദി പാഠപുസ്തകത്തിലെ ഏക പാത്ര നാടകം എന്ന സാഹിത്യരൂപത്തെ പരിചയപ്പെടുത്തുന്നതിനായി യൂ ട്യൂബില്‍ നിന്നും ശേഖരിച്ചവയാണ്. യാതോരു കച്ചവട ഉദ്ദേശ്യങ്ങളും ഇതിനു പിന്നിലില്ല.ഈ ബ്ലോഗില്‍ ഇതിന്റെ ലിങ്ക് നല്കുന്നതില്‍ എന്തങ്കിലും തടസ്സമുള്ള പക്ഷം അറിയിച്ചാലുടന്‍ ഇത് നീക്കം ചെയ്യുന്നതാണ്. 
നന്ദി : ഈ നാടകവുമായി ബന്ധമുള്ള ഏവര്‍ക്കും 

अवुवक्करिन्टे उम्मा 2

अवुवक्करिन्टे उम्मा 3

अवुवक्करिन्टे उम्मा 4

अवुवक्करिन्टे उम्मा 5

अवुवक्करिन्टे उम्मा 6

Wednesday 16 November 2011

वापसी


वापसी कहानी का पूर्ण रूप

Downloads:

Tuesday 1 November 2011

और एक प्रयास...

"चित्रकथा" टैब पर क्लिक करें

Friday 28 October 2011

दान की प्रेरणा-रॉकफेलर फौडेशन से संबन्धित एक प्रचलित कहानी


Arrow - Click image to download.(केवल शैक्षिक उपयोग केलिए)
-सधन्यवाद -मेरी दुनिया 
स्वामी विवेकानन्द
यह घटना 1894 और 1896 के समय के बीच की हैउन दिनों स्वामी विवेकानन्द शिकागो की विश्व परिषद में नाम कमाकर दर्शनशास्त्र के महान पंडित और योगी के रूप में सारे अमरीका में प्रसिद्धि पा चुके थे
रॉकफेलर
श्री रॉकफेलर के मित्रों ने उनसे आग्रह किया कि वे स्वामी जी से मिलेंलेकिन रॉकफेलर में अहंकार और पैसे की अकड थीसो उन्होने कई बार इस सुझाव को ठुकरा दियालेकिन अंत में मित्रों के आग्रह का मान रखते हुए वे शिकागो में स्वामीजी से मिलने पहुंच गये।वहाँ द्वारपाल को बाजू में सरकाते हुए उन्होने कहा, ''मुझे स्वामीसे मिलना है'' और दस्तक दिये बिना ही वे स्वामीजी के कमरे में घुस गयेस्वामीजी कुर्सी पर बैठे कुछ लिख रहे थेरॉकफेलर को बडा आश्चर्य हुआ कि स्वामी ने न तो कुछ पूछा न ही ऊपर की ओर देखा कि कौन आया हैइससे वे कुछ सहम से गयेशायद उन्हे अपमानित सा लगा और गुस्सा भी आया

oncology:ऑकऑलजी


Arrow 2 - Click image to download.The study of cancer. There are five major areas of oncology: etiology (The branch of medicine that deals with the causes or origins of disease), prevention, biology, diagnosis, and treatment. As a clinical discipline, it draws upon a wide variety of medical specialties; as a research discipline, oncology also involves specialists in many areas of biology and in a variety of other scientific areas. Oncology has led to major progress in the understanding not only of cancer but also of normal biology.

S. Krishnamurthi, adviser (Research and Planning), Cancer Institute (WIA), Adyar,


Arrow 2 - Click image to download.डॉ.कृष्णमूर्ति के निधन के अवसर पर दिनांक ३ जुलाई २०१० को दि हिंदु दैनिक में आया समाचार.
        S. Krishnamurthi, adviser (Research and Planning), Cancer Institute (WIA), Adyar, died here on Friday. He was 90.
        A doyen of oncology in the country, Dr. Krishnamurthi was born in 1919 to Sundara Reddy and Muthulakshmi Reddy, India's first woman medical graduate. He passed MBBS in 1942 and M.S. in 1946. In 1947, he went abroad to work as a Fellow of the Ellis Fischel State Cancer Hospital, Missouri, U.S., and later, at the Royal Cancer Hospital, London. Right through, he immersed himself in oncology, an interest that was to dictate the rest of his life.
      On returning to India, Dr. Krishnamurthi took charge as head of the Cancer Unit, Government General Hospital here. His close associate and collaborator of many years, V. Shanta, Director, Cancer Institute, recalled in an interview to Frontline in August 2005, how Dr. Krishnamurthi tried to kill corruption that was rampant in the hospital at that time.

दूधो नहाओ...

दूधो नहाओ पर व्याख्या
पयारे हिंदी अध्यापक बंधुओ,
क्या आप लोगो ने इस संदर्भ पर ध्यान दिया है?
"गौरा प्रात: सायं बारह सेर के लगभग दूध देती थी, अत: लालमिण के लिए कई सेर
छोड देने पर भी इतना अधिक शेष रहता था कि आसपास के बालगोपाल से लेकर
कुत्ते-बिल्ली तक सब पर मानो 'दूधो  नहाओ' का आशीर्वाद फलित होने लगा।" (गौरा
पृ.सं. 13)
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Saturday 22 October 2011

वर्ग पहेली

दसवीं कक्षा के छात्रों को  पारिभाषिक शब्दावली के शब्दों से परिचित कराने केलिए तैयार की गई एक कक्षाई युक्ति।

बाएँसे दाएँ
1.internet(4)
2.registeredletter(6)
6.vaccination(5)
7.telecommunications(5)
8.interruption(4)
10.lifeinsurance(4)

दाएँसे बाएँ
4.laboratory(5)

ऊपरसे नीचे
3.intensivecare unit(8)
5.medicalcertificate(8)
7.telephone(4)
9.temperature(4)

नीचेसे ऊपर
11.lettercard(4)
 पहेली का हल

Thursday 20 October 2011

मनुष्यता कविता का अनुवाद

मलप्पुरम जिला के तिरूर - परवण्णा जी.वी.एच.एस.एस के हिंदी अद्यापक श्री. फ्रान्सी जी ने दसवीं कक्षा की मनुष्यता कविता का अनुवाद करने की कोशिश की हैं। आपको  हिंदीसभा की ओर से बधाईयाँ। 

Sunday 9 October 2011

डॉ.शांता का भाषण

Monday 3 October 2011

विशेषण-कक्षाई प्रक्रिया

Sunday 2 October 2011

मनुष्यता कविता में परामर्शित पौरणिक पात्र

मनुष्यता कविता में कवि ने दधीचि,कर्ण,रंतिदेव,शिबी आदि दानी व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता केलिए त्याग और बलिदान का महत्वपूर्ण संदेश दिया है।

Downloads:

Wednesday 28 September 2011

कार्टून-कार्टून

Sunday 25 September 2011

बाबुलाल तेली की नाक


Monday 19 September 2011

विराम-चिह्न

 विराम का अर्थ है - रुकना,ठहरना।अपने विचारों या बात को ठीक ढंक से प्रकट करने केलिए पढ़ते लिखते समय हमें कुछ समय रुकना पड़ता है। इस प्रकार के रुकने को विराम कहते हैं।
अधिक पढ़ें

Sunday 18 September 2011

विस्मयादिबोधक अव्यय (interjections)

जिन शब्दों से शोक ,विस्मय ,घृणा ,आश्चर्य आदि भाव व्यक्त हों ,उन्हें विस्मयादि बोधक अव्यय कहा जाता हैजैसे - अरे ! तुम कब गए ,बाप रे बाप ! इतनी तेज आंधी ! वाह ! तुमने तो कमाल कर दिया आदि
विस्मयादि बोधक अव्यय का प्रयोग सदा वाक्य के आरम्भ में होता है इनके साथ विस्मयादिबोधक चिन्ह ! अवश्य लगाया जाता है .
मन के विभिन्न भावों के आधार पर विस्मयादिबोधक अव्यय के निम्नलिखित प्रमुख भेद है :- 

Wednesday 14 September 2011

इनाज के क्षेत्र में बढ़ती व्यवसायिकता


आजकल इनाज के क्षेत्र में बढ़ती व्यवसायिकता से समाज काफी आहत हैं। पुराने दिनों में हर फील्ड के लोग रुपए कमाने की अंधी दौड़ में शामिल होते थे, लेकिन डॉक्टरी पेशा इससे अछूता था। इसलिए डॉक्टरों को काफी सम्मान मिलता था। वर्तमान में स्थिति कुछ और ही है।
डॉक्टर होना सिर्फ एक काम नहीं है, बल्कि चुनौतीपूर्ण वचनबद्धता है। वर्तमान में डॉक्टर पुराने सम्मान को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं। डॉक्टरों को अपनी जवाबदारियों का पालन ईमानदारी से करना सीखना होगा। डॉक्टरों की एक छोटी-सी भूल भी रोगी की जान ले सकती है।

Thursday 1 September 2011

फिन्मी समीक्षा

फिलमी समीक्षा सिखाने केलिए दो सामग्रियाँ

Monday 22 August 2011

एक डॉक्टर जंगल में...(Thanks to MATHRUBHUMI DAILY)

जो सोता है,वह खोता है। जागृत व्यक्ति का जीवन ही सफल बनता है।जो कर्मनिरत रहते हं,वे महान बन जाते हैं।ऐसी ही एक महान विभूति से परिचय पाएँ।
<<< अधिक पढ़ने केलिए क्लिक करें >>>

Monday 15 August 2011

दवा

प्रिय डॉक्टेर्स का असली मसयालम रूप! मरुन्नु का चौथा अध्याय

Click here 2 - Click image to download.डौनलोड़ करें

Saturday 13 August 2011

कण्णूर से...6

लक्षमणनजी की चिड़िया डौनलोड्स पन्ने में

Friday 12 August 2011

कण्णूर से...5

  • इसका ओ.डी.डी. और पी.डी.एफ. दोनों रूप डौनलोड्स पन्ने में
  • pullikkanakkunsshs के लतिकाजी से मिले पारिभाषिक शब्द  डौनलोड्स पन्ने में

Thursday 11 August 2011

प्रिय डॉक्टेरस...

Friday 5 August 2011

नाक शब्द से युक्त मुहावरों का संकलन


नाक ऊँची होना - അന്തസ്സ് വര്‍ദ്ധിക്കുക
नाक कटना - മാനം കെടുക
तुम्हारे इस दुराचरण से इस परवार की नाक कट गई है - प्रेमचंद
नाक का बाल - അടുത്ത സുഹൃത്ത്

जैसे --- एक जवान अफसर ने इसे जेल में बंद कर दिया था पर दूसरे दिन
                          सबेरे वह छोड़ दिया गया था,क्योंकि वह एक नेता की नाक का बाल था। 
                                                                  – गिरिधर गोपाल
नाक काटना - മാനം കെടുത്തുക
  जैसे--- तू हमारे नाक कटाने पर लगी हुई है - प्रेमचंद
नाक कान काटना - കഠിനമായി ശിക്ഷിക്കുക
नाक काट देना - അഭിമാനം നഷ്ടപ്പെടുത്തുക
जैसे --- वादा न निभाकर उन्होंने खानदान की नाक काट दी है – भूषण वनमाली
नाक की सीध में - നേരേ മുന്നില്‍

Sunday 31 July 2011

चरक (विकीपीड़िया से)

चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र मे कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज हम चरक संहिता के नाम से जानते है।
चरकसंहिता आयुर्वेद में प्रसिद्ध है। इसके उपदेशक अत्रिपुत्र पुनर्वसु, ग्रंथकर्ता अग्निवेश और प्रतिसंस्कारक चरक हैं।
प्राचीन वाङ्‌मय के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उन दिनों ग्रंथ या तंत्र की रचना शाखा के नाम से होती थी। जैसे कठ शाखा में कठोपनिषद् बनी। शाखाएँ या चरण उन दिनों के विद्यापीठ थे, जहाँ अनेक विषयों का अध्ययन होता था। अत: संभव है, चरकसंहिता का प्रतिसंस्कार चरक शाखा में हुआ हो।
चरकसंहिता में पालि साहित्य के कुछ शब्द मिलते हैं, जैसे अवक्रांति, जेंताक (जंताक - विनयपिटक), भंगोदन, खुड्डाक, भूतधात्री (निद्रा के लिये)। इससे चरकसंहिता का उपदेशकाल उपनिषदों के बाद और बुद्ध के पूर्व निश्चित होता है। इसका प्रतिसंस्कार कनिष्क के समय 78 ई. के लगभग हुआ।
त्रिपिटक के चीनी अनुवाद में कनिष्क के राजवैद्य के रूप में चरक का उल्लेख है। किंतु कनिष्क बौद्ध था और उसका कवि अश्वघोष भी बौद्ध था, पर चरक संहिता में बुद्धमत का जोरदार खंडन मिलता है। अत: चरक और कनिष्क का संबंध संदिग्ध ही नहीं असंभव जान पड़ता है। पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में मत स्थिर करना कठिन है।

Wednesday 27 July 2011

डॉक्टरों की लापरवाही-एक रपट

पढ़ें,हसें,सोचें

This cartoon is using only for educational purpose
Thanks to cartoonpanna.blogspot.com

Tuesday 26 July 2011

गौरा का चित्र-भाष्य

कण्णूर से लक्षमणनजी एक बार फिर...

Monday 25 July 2011

चिड़या को पकडो २

स्रोत पुस्तिका में चिड़िया कविता केलिए सहायक सामग्री के रूप में दूरदर्शन द्वारा निर्मित ह्रस्व चित्र की सूचना दी है। पर इसकी कोई अधिक जानकारी तो नहीं थी।बहुत खोजा। बहुत सोचा। तब याद आयी सी.डिट.से निर्मित यह अनिमेशन चित्र के बारे में...घंटों के परिश्रम के बाद सी.डी.बोक्स से उसे ढूँढ़ निकाला...
अब देखें,जंगलों के कटाए जाने पर अकेली,बेघर चिडिया की कहानी....
सौजन्य :सी.डिट

Saturday 16 July 2011

चिडिया-एक अलग दृष्टिकोण

 हमारे ब्लोग टीम के सदस्य श्री.अशोककुमारजी ने अब अपना खामेश छोड़ दिया है। आपकी यह अनुपम प्रस्तुति पढ़ें और बताएँ उनका प्रयास कहाँ तक सफल हुआ है?कृपया जोड़िए एक टिप्पणी...


इसका odt,pdf रूप डौनलोड़ पन्ने में उपलब्ध है।

Monday 11 July 2011

वार्तालाप -एक प्रयास ऐ.सी.टी के साथ

यह तो सदानन्दपुरम हाइस्कूल के हिंदी मंच और ऐ.टी.क्लब के सदस्यों के संयुक्त प्रयास का उपज है।इसकी संशोधन की आवश्यकता है ज़रूर। आप से हम विनती करते हैं कि  इस उपज पर आपकी टिप्पणी जोड़कर इसे बहतर बनाने में सहायता दें। चर्चा के बाद इसका presentation / PDF रूप प्रकाशित कर सकते हैं


Friday 8 July 2011

कण्णूर से ...4 (लक्षमणजी का एक सराहनीय प्रयास !)


 
कण्णूर जिले के सरकारी हायर सेकंडरी स्कूल, कुञ्ञिमंगलम के हिंदी अध्यापक लक्ष्मणन जी के मन में नदी और साबुन कविता के संबंध में जो संदेह उठा वह कवि ज्ञानेन्द्रपति के नाम एक पत्र लिखने का निदान बन गया। कवि तो जिज्ञासु अध्यापक के शंका समाधान में अतीव तत्पर थे। उन्होंने तुरंत जवाब भेजा। वह पत्र केरल के हाई स्कूल हिंदी अध्यापकों की सहायता के लिए हम गर्व के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। लक्ष्मणन जी का प्रयास बिलकुल सराहनीय है। बधाइयाँ लक्ष्मणन जी।
पत्र पढ़ने के पत्र पर दो बार (डबिल क्लिक नहीं) क्लिक करें।

ज्ञानेन्द्रपतिजी का पत्र आप यहाँ से डौनलोड कर सकते हैं


Monday 4 July 2011

कन्नूर से ....3



Saturday 2 July 2011

कन्नूर से ....2

Wednesday 29 June 2011

कन्नूर से ....


ज्ञानेन्द्रपतिजी की नदी और साबुन कविता पर एक सराहनीय प्रयास।श्री लक्षमणनजी(जी.एच.एस.एस,कुजिमंगलम) से तैयार किए गए ये प्रसन्टेशन और अनुवाद पढ़िए।
लक्षमणनजी को बधाइयाँ और धन्याद।
डौनलोड करें
१.प्रसन्टेशन (ओ.डी.टी. लिनक्स केलिए)
२.प्रसन्टेशन (पी.डी.एफ)
३.कविता का मलयालम अनुवाद (पी.डी.एफ)

Friday 24 June 2011

पशु-पक्षियों की विचित्र योग्यताएँ ( हिंदी वेबसाइट से साभार)

ONLY FOR EDUCATIONAL PURPOSE
जी.के. अवधिया के द्वारा 20 Apr 2011. को ज्ञानवर्धक लेख कैटेगरी के अन्तर्गत् प्रविष्ट किया गया।
 गौरा-अतिरिक्त वाचन केलिए
द्धिमान होने की वजह से हम मनुष्य को संसार का योग्यतम प्राणी समझते हैं किन्तु प्रकृति ने पशु-पक्षियों को कुछ ऐसी योग्ताएँ प्रदान की हैं जिसका कि मनुष्य के पास नितान्त अभाव है। यही कारण है कि आज भी भूकंप की भविष्यवाणी के लिए मनुष्य अपने द्वारा बनाए गए यंत्रों के अलावा पशु-पक्षियों के असाधारण व्यवहार पर भी निर्भर है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि चूहे, नेवले, साँप, कनखजूरे जैसे प्राणी किसी विनाशकारी भूकंप के आने से बहुत दिनों पहले ही अपने घरों को त्यागकर किसी सुरक्षित स्थान में चले जाते हैं। इस बात के अनेक सबूत पाए गए हैं कि भूकंप आने के कुछ सेकंड से लेकर कई सप्ताह पूर्व से ही अनेक जानवर, मछलियाँ, पक्षी तथा कीड़े-मकोड़े विचित्र प्रकार के व्यवहार करने लगते हैं।

दिसम्बर 2004 में आए सुनामी, जिसने इण्डोनेशिया, थाईलैंड और श्रीलंका में भयंकर तबाही मचाई थी, से श्रीलंका का याला नामक अभ्यारण्य (animal reserve) बुरी तरह से विनष्ट हुआ था और उसमें अनेक पर्यटक मारे गए थे किन्तु आश्चर्य की बात है कि वहाँ संरक्षित बन्दरों, चीतों, तेन्दुओं, हाथियों जैसे 130 प्रजाति के पशुओं में से किसी का भी मृत शरीर नहीं पाया गया। आखिर उन प्राणियों ने विशाल समुद्री लहरों से अपनी रक्षा कैसे कर लिया?
भूकंपीय घटनाओं के पूर्व ही उनके विषय इन प्राणियों के द्वारा जान लेने में कौन सा तंत्र कार्य करता है इस विषय में आज चीन और जापान में बहुत सारे शोधकार्य हो रहे हैं।
केवल भूकंप ही नहीं बल्कि सूर्य या चन्द्र ग्रहण जैसी घटनाओं का भी बोध इन प्राणियों को हो जाता है जबकि हम इन प्राणियों को अबोध ही कहते और समझते हैं। बन्दर जैसा चंचल शायद ही कोई अन्य जीव हो किन्तु ग्रहण आरम्भ होने के पूर्व ही बन्दर न केवल अपनी चंचलता अर्थात उछलना-कूदना बंद कर देता है बल्कि भोजन भी त्याग देता है तथा किसी पेड़ की शाखा पर गुमसुम सा चुपचाप बैठ जाता है। और भी अनेक पशु-पक्षी हैं जो ग्रहण के प्रभाव से बचने के लिए ग्रहण लगने के पहले ही सुरक्षित स्थानों में चले जाते हैं।
सूर्य और चन्‍द्र ग्रहण की जानकारी भी इन अबोध जीवों को होती है। हर समय उछल-कूद करने वाला बंदर ग्रहण शुरू करने से पहले भोजन त्‍याग देता है और चुपचाप पेड़ की डाल पर बैठ जाता है। ग्रहण के प्रभाव से बचने के लिए ये पशु-पक्षी अपने सारे क्रिया-कलापों को छोड़कर सुरक्षित स्‍थानों पर चले जाते हैं।
क्या आप जानते हैं कि तोते भी अपने आसपास घटने वाली घटनाओं के विषय में उनके घटित होने के पहले ही जान लेते हैं? सामान्य तौर पर चहकते रहने वाले तोतों का स्वर किसी अशुभ घटना होने के पहले आश्चर्यजनक तौर पर बदल जाता है। एक जानकारी के अनुसार तोते की इसी विशेषता के कारण प्रथम विश्‍वयुद्ध के दौरान पेरिस के ‘एफिल टॉवर’ में तोतों को रखा गया था, ताकि ये हवाई हमले की पूर्व सूचना दे सकें।
मैना तो एक प्रकार से मौसम विज्ञानी ही होती है। यह पक्षी वर्षा की सूचना 12 से 36 घंटे पहले दे सकने का सामर्थ्य रखती है। यदि वर्षा या तूफान आने की संभावना होती है, तो मैना जोर-जोर से चहकने लगती है। भीषण वर्षा की जानकारी देने के बारे में तिब्‍बत और दार्जिलिंग की पहाडि़यों पर पाये जाने वाले ‘सारस’ अत्‍यंत कुशल होते हैं। इन पहाड़ी सारसों को सुरक्षित स्‍थानों, पहाडी चट्टानों और गुफाओं की ओट में जाते देखकर स्‍थानीय लोग भी अपने सामान को लेकर सुरक्षित स्‍थानों पर चले जाते हैं।
जापान में एक मछली पाई जाती है, जो रंग बदलती रहती है। उनके बदलते रंग से वहां के लोग मौसम का अनुमान लगाते हैं। मछली का रंग लाल हो तो वर्षा आने की संभावना होती है। यदि उसका रंग हरा हो तो सर्दी बढ़ने का अनुमान होता है और यदि वह सफेद रंग की हो जाए, तो गर्मी होने की संभावना रहती है।
मधुमक्खियां वर्षा के प्रति अत्‍यंत संवदेनशील होती हैं। इन्‍हें कुछ घंटों पहले पता चल जाता है कि वर्षा होने वाली है। तब ये अपने छत्‍तों से बाहर निकल कर उसके चारों ओर मंडराने लगती हैं। धीरे-धीरे इनका घेरा बड़ा हो जाता है और थोड़ी देर में उड़ कर सुरक्षित स्‍थान पर चली जाती हैं। वर्षा समाप्‍त होने पर ये फिर से अपने छत्‍तों में लौट आती हैं।
दक्षिण अमेरिका में ‘लेहा’ नामक मकड़ी पेड़ों पर अपना जाला बनाती है। जब यह मकड़ी अपने ही बनाये जाल को तोड़ देती है, तो 24 घंटों के भीतर तेज वर्षा और आंधी आने की चेतावनी होती है। सफेद कबूतर कतार बनाकर ऊंचे आसमान में उड़ान भरने लगें, तो जाना जाता है कि बिना मौसम बरसात होने वाली है। वर्षा आने से पहले छोटी काली चीटियां अपने अंडों को लेकर ऊंचे स्‍थानों पर चली जाती हैं। मेंढक की टर्र-टर्र से सहज अंदाजा होने लगता है कि वर्षा होने वाली है। घरेलू गौरैया जब पानी या धूल में उछल कूद करके नहाने लगे, तो यह भी वर्षा आने की पूर्व सूचना मानी जाती है।
पशु-पक्षियों की इस प्रकार की अतीन्द्रिय क्षमताएँ आज भी वैज्ञानिकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है।
आंशिक जानकारी उजाला मासिक (जुलाई 2010) से साभार

Tuesday 7 June 2011

A ICT Enabled TM on Nadi Aur Saboon( with links)

                 ഈ TM  ഒരുദാഹരണം മാത്രമാണ്,മാതൃകയല്ല.ഇതില്‍ നിന്ന് താങ്കള്‍ക്കെന്തു കിട്ടി എന്നറിയുന്നതിനോടൊപ്പം ഇതിലില്ലാത്തതെന്തൊക്കെ  താങ്കള്‍ കണ്ടെത്തി എന്നറിയാനും ഞങ്ങള്‍ക്ക്  ജിജ്ഞാസയുണ്ട്.ഹിന്ദീ അധ്യാപക സമൂഹത്തിനാകമാനം പ്രയോജനപ്പെടുന്ന ഒരു കൂട്ടായ്മയിലേക്ക്  താങ്കളും ചേരൂ!!!

कक्षा १०
इकाई : बसेरा लौटा दो
पाठभाग : नदी और साबुन

अब्दुल रज़ाक पी, रघुवीर, जयदीप के

समस्याक्षेत्र : जलस्थल संसाधनों के प्रबंधन में वैज्ञानिकता का अभाव।
आशय एवं धारणाएँ : प्रकृति पर मानव के अनियंत्रित हस्तक्षेप से प्राकृतिक संपदा का शोषण बढना।

प्रक्रियाएँ
संबंध कथन:
बच्चो, पिछले साल नवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक की अंतिम इकाई में हम नॆ कौन सी समस्या और आशय पर चर्चा की थी?
छात्रों की प्रतिक्रियाओं को सूचीबद्ध करें।
जैसे:
१. अवैज्ञानिक जल प्रबंधन के कारण लोगों को सब कुछ छोड़कर पलायन
    करना पड़ता है।
२. पानी की कमी एक विकट समस्या है।
३. जल का महत्व जाननेवाले थे हमारे पूर्वज।
४. जल संरक्षण के अच्छे नमूने ।
(यहाँ क्लिक करें)
ठीक है वच्चो, आप ने ठीक ही कहा है। देखो, मैं कुछ दृश्य आप को दिखाता हूँ। देखिए।
SLIDE I (यहाँ क्लिक करें)
वच्चो, आपने दृश्य देखे है न? (छात्रें के उत्तर सूचीबद्ध करें।)
आपने कौन-से दृश्य देखे ? (छात्रें के उत्तर सूचीबद्ध करें।)
इस पर आपका विचार क्या है? (छात्रें के उत्तर सूचीबद्ध करें।)
दृश्य किस विषय की चर्चा कर रहे हैं? (छात्रें के उत्तर सूचीबद्ध करें।)
प्रदूषण के कारण क्या-क्या हो सकते है?
(छात्रें के उत्तर सूचीबद्ध करें।)
प्रदूषण से जल स्रोतों की रक्षा कैसे संभव है?
छात्रें के उत्तर सूचीबद्ध करें।
कहें, बच्चो, नदी के संबंध में लिखी एक कविता हमारी दसवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तिका में है। देखिए।
प्रश्न करें।
बच्चो, पाठ्य पुस्तिका में कितनी इकाइयाँ है?
पहली इकाई कौन सी है?
पहली इकाई का पहला पाठभाग कौन सा है?
कवि और कविता का नाम क्या है?
निर्देश दें, कि बच्चो, अब आप लोग नदी और साबून नामक कविता का वाचन करें।

जो समझे है, सही चिह्न लगाएँ।
जो नहीं समझे है, रेखांकित करें।
जो बहुत अच्छे लगे, आश्चर्य चिह्न लगाएँ।

नदी और साबून (यहाँ क्लिक करें) TB
(आ सी टी द्रारा पूरी कविता दिखाएँ।)
कविता में कौन-कौन से जीवजंतुओं के नाम है?
बाघ, मछली, कछुआ, हाथी
इन्हीं नामों के आधार पर दल बनाएँ।
दल में शंका समाधान का अवसर दें।

          दुबली =മെലിഞ്ഞ
          मैली-कुचैली =മലിനമായ
          उतराई =പൊന്തിക്കിടക്കുക
          जुठारना =എച്ചിലാക്കുക
          पीठ(स्त्री) =പുറം
उलीचना =കോരിക്കളയുക
कारखाना =FACTORY
तेज़ाबी पेशाब =അമ്ല ജലം
झेलना =സഹിക്കുക
बैंगनी =വയലറ്റ്
          त्वचा =തൊലി
          सिरहाना =തലക്കല്‍
          टिकिया =കട്ട
          हार =തോല്‍വി

अन्य दलों से शंका समाधान का अवसर दें ।
कविता का विश्लेशण करें।
SLIDE 2 (यहाँ क्लिक करें)
नदी और साबून (यहाँ क्लिक करें) शब्दार्थ
नदी और साबून (यहाँ क्लिक करें) mpg

विश्लेषणात्मक प्रश्न करें


  • यहाँ कौन दुबली हो गई है?
  • एक व्यक्ति का दुबला होने का क्या क्या कारण हो सकते हैं?
  • तो एक नदी का दुबला होने का क्या क्या कारण हो सकते हैं?
  • क्या आपने किसी नदी को दुबली होते / प्रदूषित होते देखा है? इसके क्या क्या कारण हो सकते हैं?
  • मछलियाँ किस तरह उतराई है?
  • इच्छाओं के मर जाने पर क्या होता है?
  • मरी हुई मछलियाँ किसका प्रतीक हैँ?
  • तुम्हारे दुर्दिनों के दुर्जल में- कवि ने एसा क्यों कहा है?
  • बाघों के................सहती सानंद।-नदी पर पशु पक्षि और मानव का समान अधिकार है।पर किसके हस्तक्षेप से नदी को हानी पहुंचती है?
  • पेशाब शब्द से कविने आशय को अधिक तीष्ण बनाया है। क्या आप इससे सहमत है?
  • हिमालय किसका प्रतीक है?
  • भारतीय संस्कृति में हिमालय का स्थान क्या है? (पहरेदार की भूमिका)
  • उत्तर भारत की अधिकांश नदियाँ हिमालय से उत्पन्न होती हैं।तो हम कह सकते हैं कि नदी हिमालय की पुत्री है।हमारे रक्षक की पुत्री के साथ हमारा यह व्यवहार क्या ठीक है?
  • नदी किसके सामने हार गई और क्यों?
  • हथेली भर की एक साबुन की टिकिया- से क्या तात्पर्य होगा?
  • नदी सभी प्रकार के हमलाओं के विरुद्ध लड़ती रही। गाँव-गाँव में पानी पहुँचाने केलिए। पर अज्ञता से सामान्य जनता भी प्रदूषण की प्रक्रिया में भाग लेना का दृश्य(हथेली भर की एक साबुन की टिकिया- से ) देखकर नदी हताश हो गई और अपनी हार मान ली।उसने सोचा होगा-"अब मैं किसकेलिए लडूँ?”
    इस व्याख्या पर आप का विचार क्या है?
  • नदी को प्रदूषण से बचाने केलिए हम क्या क्या कर सकते हैं?
कविता का वैयक्तिक रूप से आस्वादन टिप्पणी लिखने का निर्देश दें।
दल में चर्चा करके परिमार्जन करने का निर्देश दें।
दलों से उपजें एकत्रित करें और अदल-बदलकर अन्य दलों में दें।
पूछें, आस्वादन टिप्पणी की मूल्याँकन बिंदुएँ क्या-क्या है?
उत्तरों को सूचीबद्ध करें। (यहाँ क्लिक करें)

कवि और कविता का परिचय
भावपक्ष
शिल्पपक्ष
भाषा
प्रासंगिकता
अपना मत

पूछें, तो आस्वादन टिप्पणी की मूल्याँकन सूचक क्या-क्या है?
(यहाँ क्लिक करें)
दलों में मिली आस्वादन टिप्पणी का मूल्यांकन करने का निर्दोश दें।
हर दलें से मूल्यांकन संबंधी टिप्पणी करने का निर्देश दें।
प्रस्तुतीकरण करवाएँ।
अद्यापक अपना प्रस्तुतीकरण करें।
(यहाँ क्लिक करें)
पाठ्यपुस्तक की मूल्यांकनफारमाट के आधार पर आस्वादन टिप्पणी का स्वनिर्धारण करें।
पुनर्लेखन करके पोरट फोलियो में संकलन करने का निर्देश दें।
(मलयालम परिभाषा)
(हिंदी)mp3 (1)
(मलयालम)Mp3

Saturday 4 June 2011

पढिए,कुछ कहिए...

आह!लेकिन
स्वार्थी कारखानों का तेज़ाबी पेशाब झेलते
बैंगनी हो गई तुम्हारी शुभ्र त्वचा (ज्ञानेन्द्पति)

കാടുകള്‍ വെട്ടിവെളുത്തൂ കരിമണ്‍-
മേടുകള്‍ പൊങ്ങീ കമ്പനി വക്കില്‍
ആറുകളില്‍ കുടിവെള്ളം വിഷമായ്
മാറുകയാംകെടുരാസജലത്താല്‍
(വൈലോപ്പിള്ളി ശ്രീധരമേനോന്‍)

Thursday 26 May 2011

गौरा-रेखाचित्र सिखाने केलिए सहायक सामग्री


महादेवी वर्मा का "गौरा"रेखाचित्र कक्षा में प्रस्तुत करने से पहले  श्रीमती सी.आर. राजश्री की यह आलेख पढें।महादेवी वर्मा द्वारा रचित सोना और गौरा नामक रेखाचित्र में मानव के निष्ठुर व्यवहार पर उन्होंने प्रकाश डाला है। पशु-पक्षी भी प्रेम के लिए लालियत रहते हैं और प्रेम दिखाने पर आनंदविभोर हो उठते हैं। बेजुबान होने पर भी स्नेह के कई मूक प्रर्दशन होते है।  परन्तु मानव अपने स्वार्थ के कारण इन बेजुबान जानवरों पर इतना अत्याचार और निर्दय व्यवहार करता है और उनपर कितना जुल्म करता है इसका कोई अंत नहीं। मानव द्वारा इतनी यातना सह कर भी पशु मानव के स्वभाव से अब तक अनजाना है। मानव का यह स्वार्थ अंत में वेदना का कार्य और कारण बन जाता है, इसी बात पर प्रकाश डालना ही महादेवी वर्मी का मुख्य ध्येय है।
गौरा और सोना के संदर्भ में जानवरों के प्रति मनुष्य के व्यवहार पर विशेष अध्ययन  इस आलेख में है।
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Friday 20 May 2011

एक स्लैड शो-नदी और साबुन


Saturday 14 May 2011

संकट में यमुना Source: यू-ट्यूब

यमुना नदी अब संकट से गुजर रही है। पानी काला हो गया है, वातावरण में भी ताजगी नहीं रही। यमुना के दर्द को संजोए रवीश कुमार की खास रिपोर्ट...

Tuesday 10 May 2011

संस्मरण और रेखाचित्र

संस्मरण और रेखाचित्र में क्या कोई अंतर है?
महादेवीजी की गोरा सिखाने से पहले कृपया पढ़ें...
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Sunday 8 May 2011

कविताओं में प्रतीक शब्दों में नए सूक्ष्म अर्थ भरता है

3D new 2 - Click image to download.मनोजकुमारजी की यह रचना भी पढ़ें।
कविताओं की आस्वादन टिप्पणी लिखते समय आप को बहुत लाभदायक होगा।
पढ़ने केलिए क्लिक करें... 
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कविताओं में बिंब और उनसे जुड़ी हुई संवेदना

3D new 2 - Click image to download.प्रिय अध्यापक बन्धुओँ....
नोजकुमारजी की यह रचना पढ़ें।
कविताओं की आस्वादन टिप्पणी लिखते समय आप को बहुत लाभदायक होगा।
पढ़ने केलिए क्लिक करें...


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Wednesday 4 May 2011

अदृश्य होनेवाला अलौकिक

Monday 2 May 2011

जल प्रदूषण

Sunday 1 May 2011

लुप्त होती नदियां

Source:   एक दुनिया एक आवाज

भारत नदियों का देश कहा जाता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारी नदियां आज लुप्त प्रायः होती जा रही हैं। नदियों की बात चलती है तो जेहन में सवाल उभरता है कि आखिर नदियां कैसे बनती हैं? कहां से आता है पानी इन नदियों में?

आज हम जो सबसे सुन रहे हैं कि भारत की नदियां मर रही हैं नाला बन गई हैं तो आईये जानते हैं टॉक्जिक लिंक के निदेशक रवि अग्रवाल की जुबानी कि हमारी नदियों की आज क्या स्थिति है और उसके लिये कौन जिम्मेदार है?

गीत नदी की रक्षा का


Source: 
बुन्देलखण्ड संसाधन अध्ययन केन्द्र, छतरपुर: म.प्र.
Author: 
भारतेन्दु प्रकाश


नदियों को आजाद करो
अब न उन्हें बर्बाद करो,
नदियाँ अविरल बहने दो
उनको निर्मल रहने दो,
नदियों को यदि बहना है
तो जंगल को रहना है,
बॉंध नदी के दुश्मन हैं
जंगल उसके जीवन हैं,
मत काटो-बर्बाद करो,
उन्हे पुनः आबाद करो।

धरती का सम्पूर्ण जहर
गाँव-गाँव और शहर-शहर
बहा सिंधु मे ले जातीं
पावन भूमि बना जातीं,
प्राणिमात्र को दे जीवन
कृषि की बनती संजीवन,
भूजल-संग्रह भर देतीं
भूमि उर्वरा कर देतीं,
सरिता संग संवाद करो,
अब उनको आजाद करो।



रुको, न नदियों को मोड़ो
इधर-उधर से मत जोड़ो,
प्रकृति न इसको सहती है
सारी दुनिया कहती है,
सदियों तक सहना होगा
वर्षों तक दहना होगा,
सरिता तट के गाँव सभी
नही पायेंगे उबर कभी,
दूभर होगा जलजीवन,
वापस लाना बहुत कठिन।

सघन अगर जंगल होंगे
वर्षा जल को रोकेंगे,
गॉंव गॉंव तालाब भरें
कुंये बावड़ी नद जोहरें,
नदी बहें यदि पूरे साल
कभी न हो कोई बेहाल,
जोड़ तोड़ का काम नहीं
नदी मोड़ का नाम नहीं,
सारा राष्ट्र सुखी होगा
कोई नही दुखी होगा।

नदियाँ संस्कृति की माँ हैं
भारत भू की गरिमा हैं
जन-जन की आस्था उनमे
स्वयं प्रकृति की महिमा ये,
आओ अब संकल्प करें,
नदियों का संताप हरें,
बारह माह प्रवाह रहे
जीवन मे उत्साह रहे,
गंगा सी सारी नदियाँ,
फिर लौटें सुख की सदियाँ।।

कराहती नदियां

वेब/संगठन: chauthiduniya com 

Author: चौथी दुनिया

आमी का गंदा जल सोहगौरा के पास राप्ती नदी में मिलता है। सोहगौरा से कपरवार तक राप्ती का जल भी बिल्कुल काला हो गया है। कपरवार के पास राप्ती सरयू नदी में मिलती है। यहां सरयू का जल भी बिल्कुल काला नज़र आता है। बताते हैं कि राप्ती में सर्वाधिक कचरा नेपाल से आता है। उसे रोकने की आज तक कोई पहल नहीं हुई। पिछले दिनों राप्ती एवं सरयू के जल को इंसान के पीने के अयोग्य घोषित किया गया। कभी जीवनदायिनी रहीं हमारी पवित्र नदियां आज कूड़ा घर बन जाने से कराह रही हैं, दम तोड़ रही हैं। गंगा, यमुना, घाघरा, बेतवा, सरयू, गोमती, काली, आमी, राप्ती, केन एवं मंदाकिनी आदि नदियों के सामने ख़ुद का अस्तित्व बरकरार रखने की चिंता उत्पन्न हो गई है। बालू के नाम पर नदियों के तट पर क़ब्ज़ा करके बैठे माफियाओं एवं उद्योगों ने नदियों की सुरम्यता को अशांत कर दिया है। प्रदूषण फैलाने और पर्यावरण को नष्ट करने वाले तत्वों को संरक्षण हासिल है। वे जलस्रोतों को पाट कर दिन-रात लूट के खेल में लगे हुए हैं। केंद्र ने भले ही उत्तर प्रदेश सरकार की सात हज़ार करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी परियोजना अपर गंगा केनाल एक्सप्रेस-वे पर जांच पूरी होने तक तत्काल रोक लगाने के आदेश दे दिए हों, लेकिन नदियों के साथ छेड़छाड़ और अपने स्वार्थों के लिए उन्हें समाप्त करने की साजिश निरंतर चल रही है। गंगा एक्सप्रेस-वे से लेकर गंगा नदी के इर्द-गिर्द रहने वाले 50 हज़ार से ज़्यादा दुर्लभ पशु-पक्षियों के समाप्त हो जाने का ख़तरा भले ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पहल पर रुक गया हो, लेकिन समाप्त नहीं हुआ। गंगा और यमुना के मैदानी भागों में माफियाओं एवं सत्ताधीशों की मिलीभगत साफ दिखाई देती है। नदियों के मुहाने और पाट स्वार्थों की बलिवेदी पर नीलाम हो रहे हैं।